वह बीस की उम्र में कुछ कमाल का कर लेना चाहती थी
उसने अठारह में ही पढ़ ली थीं दुनिया के महान मनुष्यों की जीवनियां
एक के बाद एक न जाने कितनी योजनाएं उसने बनाईं और रद्द करी
मगर वह कर पाई बेहद साधारण काम
जैसे-शादी, रसोई, बच्चे, परवरिश, नौकरी, पैसा...
अब वह पैंतीस की है
और भविष्य के सपनों से अधिक अतीत की स्मृतियों में खोई रहती है
कामयाब होने से अधिक अब उसकी रुचि उन अंडों को फिर से देखने में हैं
जिनसे वह बचपन में बच्चे निकलते हुए देखना चाहती थी
या उन वृक्षों में जिन पर चढ़कर फल खाना वह कभी नहीँ सीख पाई
या बरसात के उस खेल में जिसमें राम की बिल्लियाँ पकड़ने की प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी
हालांकि अभी वह उम्र से पाँच बरस कम ही लगती है
फिर भी हर रात सोते समय वह ख़ुद से पूछती है
क्या वह बूढ़ी हो गई है ?
इस सवाल का जवाब बहुत सकारात्मक देने के बाद भी वह जानती है
कि वह हर दिन बूढ़ी हो रही है
उसे अब अपना जन्मदिन हतोत्साहित करता है
अब वह जन्मदिन, शादी की सालगिरह और उत्सव पर मिले उपहार देखकर भी ख़ुश नहीँ हो पाती
अक्सर देर रात तक जागते-जागते वह सो जाती है
उसे कभी-कभार नींद में वह लड़का नज़र आता है जिसने उसे बचपन में साईकिल सिखाई थी
वह उस लड़के के सामने ख़ुद को फूट-फूट कर रोते हुए देखती है
वह देखती है रोते हुए वह दस बरस की बच्ची लग रही है।